Friday 24 June 2016

गुलबानो : अजीत कौर / वीणा भाटिया

 vina bhatia


अजीत कौर पंजाबी की उन लेखिकाओं में हैं जिनका नाम बहुत ही सम्मान के साथ लिया जाता है। अजीत कौर के लेखन के बारे में एक पँक्ति में कहा जा सकता है कि वह अपनी पहचान खोते जा रहे उन तबकों के जीवन-संघर्षों को सामने लाता है, जिनकी नियति में पराजय लिख दिया गया है। अपने लेखन में अजीत कौर ने इन्हीं वंचित तबकों के जीवन-यथार्थ को उकेरने की कोशिश की है, जिनमें वंचित महिलाओं का आना स्वाभाविक ही था। इनकी रचनाओं में स्त्री का संघर्ष और परिवार एवं समाज में उसकी हीन दशा के विविध पहलुओं का चित्रण हुआ है। यही नहीं, उनके लेखन में राजनीति के लगातार जनविरोधी होते जा रहे चरित्र का खुलासा होने के साथ उस पर प्रहार भी है।
अन्य पंजाबी लेखकों की तरह अजीत कौर पर भी भारत-विभाजन का गहरा प्रभाव पड़ा। विभाजन ने उनके दिल में ऐसा घाव पैदा कर दिया जो कभी भरा नहीं जा सकता। दुनिया की इस सबसे बड़ी त्रासदी की पीड़ा उनके लेखन में प्रमुखता से जाहिर हुई है और आज भी संभवत: उनके मन को सालती रहती है। यही कारण है कि उन्होंने दक्षिण एशियायी देशों के लेखकों-संस्कृतिकर्मियों की एकता को लेकर काम किया और आठ देशों के लेखकों का एक संगठन बनाया, जिसका समय-समय पर सम्मेलन होता है। सार्क देशों के लेखकों के इस संगठन ने आपसी विचार-विनिमय और मिलने-जुलने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया है। इस संगठन के जरिए दक्षिण एशियायी देशों के लेखक-कलाकार आपस में मिलते हैं और विचार साझा करते हैं। यह एक बड़ी बात है जिसे अजीत कौर ने अपनी पहल से सम्भव किया है।
अजीत कौर को फेमिनिस्ट कहा जाता है। पर वे परम्परागत अर्थों में फेमिनिस्ट नहीं हैं। उनका कहना है कि वे फेमिनिस्ट तो हैं, पर बात-बात पर आन्दोलन करने वाली फेमिनिस्ट नहीं हैं। स्त्री के दुख-दर्द को सामने लाना और उसके जीवन की पड़ताल करना यदि फेमिनिज्म है तो वे फेमिनिस्ट हैं। पर भूलना नहीं होगा कि उनकी कहानियों-उपन्यासों में जो महिला क़िरदार आती हैं, वे निम्न मध्यवर्गीय और निम्न वर्ग की हैं। स्त्री की स्वतंत्रता उनके लिए न्यायपरक और शोषण से मुक्त समाज में ही सम्भव है। यह देखते हुए कहा जा सकता है कि उनका वैचारिक फ़लक काफ़ी विस्तृत है। खास बात है कि अजीत कौर सिर्फ़ लेखन में ही नारी स्वत्रंता का सवाल नहीं उठातीं, बल्कि इसके लिए वे सामाजिक स्तर पर भी सक्रिय रही हैं। इन्होंने दिल्ली में सार्क एकेडमी ऑफ आर्ट एंड कल्चर नाम की संस्था बनाई है। यहाँ गरीब लोगों, झुग्गियों के बच्चों और स्त्रियों को भी आने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इस तरह अजीत कौर सिर्फ़ लेखन ही नहीं, व्यवहारिक स्तर पर भी आम लोगों, खासकर वंचित तबकों को रचनात्मक गतिविधियों से जोड़ती हैं। जाहिर है, ऐसा करने वाले लेखक बहुत ही कम हैं।
1934 में लाहौर में जन्मी अजीत कौर ने पढ़ाई के दौरान ही लेखन की शुरुआत कर दी थी। उनकी पहली कहानी इंटर कॉलेज की पत्रिका में प्रकाशित और पुरस्कृत हुई थी। अजीत कौर का जीवन संघर्षों से भरा रहा। उनके लेखन में भी संघर्षों की गाथा सामने आई है। अजीत कौर के लेखन को व्यापक पहचान मिली। देश ही नहीं, विदेशों में भी उनकी कृतियाँ लोकप्रिय हुईं। उनके प्रमुख कहानी-संग्रह हैं – कसाईबाड़ा, गुलबानो, बुतशिकन, मौत अली बाबेदी, न मारो, नवम्बर 84, काले कुएँ, दास्तान एक जंगली राज की। उपन्यासों में धुप्प वाला शहर और पोस्टमार्टम प्रमुख हैं। आत्मकथा इन्होंने दो खंडों में लिखी – खानाबदोश और कूड़ा-कबाड़ा। कच्चे रंगा दा शहर लंदन नाम से इन्होंने यात्रा वृतांत भी लिखा है। तकीये दा पीर नाम से संस्मरणों की भी एक पुस्तक सामने आई है। आत्मकथा खानाबदोश का कई भाषाओं में अनुवाद हुआ। कई कहानियों पर टेलीविजन सीरियल भी बने।
अजीत कौर ने होश संभालते ही देश का विभाजन देखा। भयानक दंगे और रक्तपात। बड़े पैमाने पर विस्थापन। इस त्रासदी का उनके मन पर गहरा असर पड़ा। इसके बाद 1984 में सिखों का जो कत्लेआम हुआ, उसने उनकी आत्मा को झकझोर दिया, विदीर्ण कर दिया। उन्होंने लिखा – “वह औरत जिसने इस देश पर इतने वर्षों से शासन किया, जिसने अमृतसर में हरमंदिर साहब पर अहमद शाह अब्दाली की तरह हमला बोला और इस देश को अपनी व्यक्तिगत संपत्ति समझा।” 1984 में सिखों के कत्लेआम को वह चंगेज खान, अब्दाली और नादिर शाह के क्रूर कृत्यों के समान मानती रहीं। गुजरात में 2002 में हुए दंगों की भी उन्होंने खुल कर निंदा की और इसे मानवता पर एक बड़ा धब्बा कहा।
आज 82 साल की उम्र में भी वे सक्रिय हैं। पिछले दिनों उनकी किताब ‘लेफ्टओवर्स’ आई थी और अब आ रही है ‘यहीं कहीं होती थी जिन्दगी’। साहित्य अकादमी पुरस्कार एवं अन्य कई पुरस्कारों से सम्मानित अजीत कौर आज भी नये लेखकों को प्रोत्साहित करने के साथ हर तरह से उनकी मदद को तैयार रहती हैं। अजीत कौर की रचनाओं को जितनी बार पढ़ा जाए, उतनी बार लगता है जैसे पहली बार पढ़ रहे हैं। यही तो महान रचनाओं का गुण है।